मन का अबिराम
जिन्दगी किसी मोड़ में क्या पाया है ,जिसे देखु वह अपना पराया है ,
साहिल देखने से यु नहीं बनती
जिसे सोचा था पराया वह ही अपना साया हे
मुस्तगिल में सोचने पर उसे ही हमेसा पास पाया हे
जिन साहिलों का जो कभी कोई किनारा न था
उसे भी मुस्किलो में अपने गले लगाया हे
बेदर्द सी थी जो जिंदगी वह अब जा कर भाया हे
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